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वट सावित्री व्रत,  इस व्रत कथा का महत्त्व, यमलोक से ले आए प्राण  

UNITED NEWS OF ASIA. वट वृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन विष्णु और अग्र भाग में देवाधिदेव भगवान शिव स्थित रहते हैं। देवी सावित्री भी बट वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं। इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत से मृत पति को जीवित किया था।

तब से यह व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है। कुछ महिलाएं अमावस्या को ही व्रत रखती हैं। इस व्रत में करती हैं। पूजा करते समय स्त्रियां वट वृक्ष को जल से अर्पित करती हैं। सावित्री सत्यवान की कथा भी सुनते हैं।

जिले सहित अंचल (ग्रामों) में वट सावित्री व्रत और शनि जयंती 6 जून को मनाया विधिवत रूप से मनाया गया । इस पर्व को मनाने व्रती माताओं ने बाजार से पूजन सामग्री की खरीदारी जोरों पर की। मंदिरों को भव्य रूप से सजाया गया है । वहीं सुहागिन इस दिन वट की पूजा कर परिक्रमा कर सुख शांति व पुत्र प्राप्ति की कामना करती है । सुहागिन महिलाएं इस व्रत को पूरे विधि- विधान से करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का का वरदान प्राप्त होता है। यह व्रत महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। इसके अलावा, कुछ जगहों पर कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत का पालन करती हैं।

आज शनि मंदिर में होगी विशेष पूजा

आज लोग शनि चालीसा का पाठ करेंगे। शनि मंदिर जाकर काले माह साबुत, तेल, काला कपड़ा, काला फल, सूखा नारियल शनि महाराज को अर्पित और शनि के बीच मंत्र का जाप करते नजर आएंगे। सुहागिनों द्वारा वट वृक्ष की परिक्रमा करते समय कच्चा धागा लपेटा जाता है। इस व्रत को करने से रोगों से छुटकारा मिलता है और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। इससे परिवार निरोगी रहता है। बता दें कि वट देव वृक्ष है।

 


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