
बात 1979 की है। उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के ऊसराहार थाने में एक आम दिन जैसी चहल-पहल थी। तभी वहां एक बुजुर्ग किसान पहुंचा। थाने में घुसते ही दिखे सबसे पहले सिपाही से कहा- साहब मेरा बैल चोरी हो गया है। सिपाही ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। वो किसान दरोगा के पास पहुंचा। अपनी बात दोहराई। दरोगा ने बात पूरी सुनी, लेकिन रिपोर्ट नहीं लिखी।
निराश होकर वो किसान थाने से जाने लगा। तभी बाहर खड़े एक सिपाही ने कहा- बाबा चढ़ावा चढ़ाओ, काम हो जाएगा। किसान वापस थाने के अंदर गया। मोल-भाव के बाद 35 रुपए की रिश्वत लेकर रिपोर्ट लिखी गई।
रिपोर्ट लिखने के बाद मुंशी ने किसान से पूछा- बाबा यह बताओ कि हस्ताक्षर करोगे कि अंगूठा लगाओगे। किसान ने कहा- हस्ताक्षर। इसके बाद किसान ने जेब से एक मोहर निकाली और उस कागज पर थोप दिया। उस मोहर पर लिखा था- प्रधानमंत्री, भारत सरकार। किसान के रूप में पहुंचा शख्स कोई और नहीं, बल्कि भारत के 5वें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह थे।
भारत भाग्य विधाता “the political chair” के पांचवें एपिसोड में चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनने और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से…
सत्ता की खींचतान में गिर गई मोरारजी की सरकार
इमरजेंसी की वजह से कांग्रेस के खिलाफ ऐसा माहौल बना कि 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी रायबरेली सीट करीब 55 हजार वोटों से हार गईं। जबरन नसबंदी की वजह से विलेन बने इंदिरा के बेटे संजय गांधी भी अपनी सीट अमेठी हार गए। कांग्रेस 189 सीटों पर सिमट गई।
विपक्षी नेताओं को मिलाकर बने जनता पार्टी गठबंधन के चुनाव जीतते ही प्रधानमंत्री पद के लिए 3 दावेदार सामने आए- मोरारजी देसाई, जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह। आखिरकार मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, जिसका किस्सा हम इस सीरीज के चौथे एपिसोड में बता चुके हैं।

चरण सिंह को गृह मंत्रालय दिया गया, लेकिन वो इस फैसले से खुश नहीं थे। कुछ ही महीनों में अंदरूनी खींचतान शुरू हो गई। चरण सिंह खुद को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते थे। वो देसाई को Do-Nothing प्राइम मिनिस्टर कहते थे। उनकी शिकायत थी कि देसाई खुद फैसला लेते हैं। उन्हें मंत्रिमंडल के दूसरे नेताओं के ओपिनियन की जरूरत महसूस नहीं होती। दोनों के मतभेद राजनीतिक गलियारों से निकलकर जनता तक पहुंचने लगे थे।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया ऑफ्टर गांधी’ में लिखते हैं, ‘मतभेदों के बीच चरण सिंह ने देसाई के बेटे कांति देसाई पर कई आरोप लगाए। देसाई पहले से चौधरी चरण सिंह के व्यवहार से खुश नहीं थे। बेटे पर लगाए गए आरोप की वजह से उनकी नाराजगी बढ़ गई और 1978 में उन्होंने चरण सिंह को अपनी कैबिनेट से बाहर कर दिया।’
चरण सिंह ने शक्ति प्रदर्शन के लिए एक विशाल किसान रैली का आयोजन किया। चूंकि वो किसान नेता थे इसलिए रैली में अच्छी संख्या में भीड़ जमा हुई। जनता के बीच गुस्से को देखकर सरकार डर गई और चरण सिंह को वापस मंत्रिमंडल में लेना पड़ा।

दोबारा मंत्रिमंडल में आने पर चरण सिंह देश के उप प्रधानमंत्री बने। इसके साथ वित्त मंत्रालय का काम भी अपने जिम्मे लिया। उधर दलित वोट बैंक का ध्यान रखते हुए बाबू जगजीवन राम को भी उप प्रधानमंत्री बनाया गया। यह पहला मौका था, जब देश में एक साथ दो उप प्रधानमंत्री बने थे।
जुलाई 1979 में संसद के मानसून सत्र में जनता पार्टी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ। चरण सिंह ने बगावत कर दी और अपने सांसदों के साथ सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इस सिचुएशन में मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
चरण सिंह की पार्टी के पास 48 सांसद थे, फिर भी प्रधानमंत्री बने
सरकार बनाने के लिए लोकसभा में कम से कम 50 फीसदी का बहुमत जरूरी है। कांग्रेस के पास 189 सीट थीं। विपक्ष के पास 227 सीटें थीं। वहीं चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोक दल के पास 48 सीटें ही थीं। भारतीय लोकदल के साथ जनसंघ, कांग्रेस (ओ), सोशलिस्ट पार्टी ने एक होकर जनता पार्टी बनाई थीं, जिसने कांग्रेस को शिकस्त दी। इस चुनाव में जनता पार्टी के पास इतने वोट थे कि वो सत्ता की दावेदारी कर सके।
इस बार मोरारजी सरकार में उप प्रधानमंत्री रहे चरण सिंह ऐसा नहीं चाहते थे। वो PM बनने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे।
इस बीच लोकसभा चुनाव हार चुकी इंदिरा की कांग्रेस ने चरण सिंह की पार्टी को सपोर्ट करने का ऑफर दिया। चरण सिंह मान गए और इस तरह वो 28 जुलाई 1979 को देश के पांचवें प्रधानमंत्री बनाए गए।

पत्रकार से बोले- प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने में क्या बुराई
मोरारजी देसाई की कैबिनेट में कानून मंत्री हुआ करते थे शांति भूषण। वो अपनी आत्मकथा ‘कोर्टिंग डेस्टनी’ में लिखते हैं- ‘1978 में चुनाव में कोई गड़बड़ी न हो, इसके लिए एक कैबिनेट कमेटी बनाई गई थी। मेरे अलावा इस कमेटी के सदस्य थे चरण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, प्रताप चंद्र चंदर।
कमेटी की बैठक में एक बार चरण सिंह कुछ देर से पहुंचे थे। वो पत्रकारों को अपने देर से आने का कारण बताने लगे। एक पत्रकार ने उनसे सवाल पूछ लिया- आप प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत तत्पर लग रहे हैं! चरण सिंह ने गुस्से में कहा- प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने में बुराई ही क्या है।
खुद को नोटिस कराने के लिए इंदिरा पर निशाना
प्रधानमंत्री पद का एम्बिशन रखने वाले चरण सिंह के बारे में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया ऑफ्टर गांधी’ में लिखा है, ‘मोरारजी देसाई की कैबिनेट में गृहमंत्री चरण सिंह दो नंबर की हैसियत से काम करने के लिए पहले दिन से तैयार नहीं थे।
उन्हें लगता था कि अगर देश में इमरजेंसी लगाने के आरोप में इंदिरा गांधी को अरेस्ट करवाने में वो सफल हो गए तो राजनीति का केंद्र बिंदु बन जाएंगे। वो नोटिस होंगे, जनता उन्हें साहसी मानेगी और उनके बारे में लोग चर्चा करेंगे।’
पत्रकार और लेखक कुलदीप नैयर ने भी अपनी किताब ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में इंदिरा को सजा देने को लेकर चरण सिंह के विचार का जिक्र किया है। चौधरी चरण सिंह के साथ कुलदीप नैयर की अच्छी दोस्ती थी।
वो लिखते हैं, ‘मैं उस समय के गृहमंत्री चरण सिंह से महीने में दो-तीन बार मिल लेता था। जनता सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही मोरारजी देसाई और चरण सिंह के बीच दरार पैदा होने लगी थी। इसका पार्टी और सरकार दोनों पर ही प्रभाव पड़ा। दोनों इस बात पर भी सहमत नहीं हुए कि इमरजेंसी के दौरान ज्यादतियों की जांच के लिए कमीशन नियुक्त किया जाना चाहिए या नहीं।
मोरारजी देसाई ने फाइल पर लिख दिया था देश की जनता ने इंदिरा गांधी और उनकी पार्टी को हराकर उन्हें पर्याप्त सजा दे दी है। इस बात से चरण सिंह संतुष्ट नहीं थे। वो इंदिरा के खिलाफ मुकदमा चाहते थे। बाद में वो सरकार से अपनी बात मनवाने में सफल रहे।
दरअसल, सरकार के सभी कैबिनेट मंत्रियों को चरण सिंह ने अपने साथ मिला लिया। वो सब न सिर्फ कमीशन नियुक्त करने, बल्कि इंदिरा गांधी पर मुकदमा चलाए जाने की मांग प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से करने लगे।
इस तरह चरण सिंह की वजह से इमरजेंसी में हुई ज्यादतियां और चुनाव प्रचार के दौरान इस्तेमाल की गई जीपों की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने का फैसला किया गया।’
पत्नी की वजह से चरण सिंह से बदली इंदिरा की गिरफ्तारी की तारीख
दरअसल, इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव प्रचार में इंदिरा गांधी ने सरकारी पैसों से खरीदी गई 100 जीपों का इस्तेमाल किया था। लिहाजा भ्रष्टाचार के आरोप में इंदिरा को गिरफ्तार करने का फैसला किया गया। उनकी गिरफ्तारी की तारीख 1 अक्टूबर तय की गई। जब चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी को यह बात पता चली तो उन्होंने गिरफ्तारी की तारीख बदलने की बात कही।

गायत्री देवी का कहना था कि 1 अक्टूबर को शनिवार है। इस दिन अगर इंदिरा गिरफ्तार होती हैं तो दूसरे दिन संडे होने की वजह उन्हें बेल नहीं मिलेगी और एक महिला के लिए यह दिक्कत की बात होगी। चरण सिंह पत्नी की बात मान जाते हैं। गिरफ्तारी की तारीख को बदलकर 2 अक्टूबर करने का आदेश देते हैं।
इंटेलिजेंस ब्यूरो में पूर्व DIG विजय करण उन्हें 2 अक्टूबर को गिरफ्तारी की सलाह नहीं देते हैं। वो कहते हैं कि अगर गांधी जयंती के दिन गिरफ्तार किया गया तो पूरा मुद्दा कहीं और भटक जाएगा। 3 अक्टूबर इस काम के लिए परफेक्ट रहेगा।
चरण सिंह को यह बात सही लगी। 2 अक्टूबर को वो CBI के डायरेक्टर को बुलाते हैं। इंदिरा की गिरफ्तारी का आदेश देते हैं। इस तरह 3 अक्टूबर को इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
पहले इंदिरा का विरोध, फिर उनके ही समर्थन से बने PM
28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह कांग्रेस और CPI के समर्थन से ही PM बन पाए थे। तत्कालीन राष्ट्रपति संजीव रेड्डी ने उन्हें 20 अगस्त तक लोकसभा में बहुमत साबित करने का मौका दिया, लेकिन इंदिरा ने 19 अगस्त को ही अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिरा दी। इसके बाद वे कार्यवाहक पीएम बने रहे।

उस वक्त की ‘हिम्मत’ मैगजीन ने पहले ही ये खबर छापी थी कि इंदिरा ने चरण सिंह को प्रधानमंत्री बना तो दिया है, लेकिन वो मध्यावधि चुनाव चाह रही हैं। इंदिरा जानती हैं कि चुनाव होने पर उन्हें ज्यादा फायदा मिलेगा।
मैगजीन में यह लिखा गया कि इंदिरा गांधी को बदला लेने और अपनी बात मनवाने का मौका मिल गया। उन्होंने शर्त रख दी कि कांग्रेस नेताओं के खिलाफ जो मामले चरण सिंह ने मोरारजी सरकार में मंत्री रहने के दौरान दर्ज करवाए हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए।
यह शर्त चौधरी चरण सिंह को मंजूर नहीं थी। उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसी तरह वो 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक ही PM रह पाए।
केवल साढ़े पांच महीनों तक ही चौधरी चरण सिंह PM के पद पर रहे। इस दौरान संसद का कोई सत्र नहीं होने की वजह से वह संसद नहीं जा सके। इस तरह वह भारत के एकमात्र PM बन गए, जिन्होंने संसद का सामना ही नहीं किया।
जब UP के मुख्यमंत्री थे, तब उनके पास सिर्फ एक शेरवानी थी
चरण सिंह उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं। उनकी शेरवानी का एक किस्सा लेखक राजेन्द्र सिंह ने अपनी किताब ‘एक और कबीर’ में लिखा है। चौधरी चरण सिंह 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
उस समय तक उनके पास एक ही ऊनी शेरवानी हुआ करती थी। वो भी बहुत पुरानी थी और एक जगह से फट गई थी। उन्हें फिजूलखर्ची बिल्कुल पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने शेरवानी रफू करवाने के लिए भेज दी।
कुछ दिनों के बाद जब उनका स्टाफ शेरवानी लेने गया तब दर्जी ने बाद में आने को कहा। स्टाफ वापस आया और कुछ दिनों के बाद दोबारा गया। दर्जी ने फिर देने से मना कर दिया। स्टाफ को गुस्सा आ गया, उसे डरा-धमकाकर सही वजह पूछी।
दर्जी ने बताया कि शेरवानी खो गई है, उसे मिल नहीं रही। स्टाफ को पता था कि चरण सिंह को लापरवाही पसंद नहीं, लेकिन बात तो बतानी ही थी।
चरण सिंह ने जब पूरी बात सुनी तो कहा- कोई बात नहीं, उससे गलती हो गई। दर्जी बेचारा गरीब आदमी है, उससे कोई कुछ नहीं कहेगा। चलो इसी बहाने मैं एक नई शेरवानी खरीद लूंगा।
चरण सिंह ने जो नई शेरवानी बनवाई उसे उन्होंने 1978 तक पहना।
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अगले क्रम में जानिए राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने का किस्सा। जिस दिन इंदिरा गांधी की हत्या हुई, उसी शाम प्रधानमंत्री कैसे बने राजीव… ??
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