
कवर्धा, श्रावण मास और मां नर्मदा की प्रेरणा, कैसे शुरू हुई धर्मनगरी कवर्धा से बोलबम के नारों से गूंजती सबसे पहली कांवड़ यात्रा
UNITED NEWS OF ASIA. मोर मान मोर कबीरधाम के विशेष लेखांकन के इस क्रम में आपका स्वागत है । मोर मान मोर कबीरधाम (इतिहास विरासत स्मृतियां) के माध्यम से UNA आप तक कबीरधाम से जुड़े अनसुनी और ऐसी इतिहास स्मृतियों को सामने लाने को कोशिश कर रहा है जो कबीरधाम के प्रत्येक व्यक्ति के लिए गर्व का विषय है । इस लेख के माध्यम से हमें यह विश्वास है की आप हमारे द्वारा आपके सामने लाए गए इन जानकारियों से प्रेरित होकर अपने कबीरधाम के बारे जानकारी औरों से बड़े गर्व के साथ साझा कर रहे होंगे । हमारा आपसे बस यही निवेदन हैं कि अपने परिवार के साथ इन सब बातों को जब भी आपको समय मिले जरूर बताएं ।
कबीरधाम में इतिहास से जुड़े अनेक ऐसे स्थान है ऐसे कई चीज़ें है जो अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जिनकी कल्पना हम नही कर सकते UNA इन स्थानों, विषयों की जानकारी आप तक अपने कड़े परिश्रम से लाने में कामयाब होता जा रहा है ।
आइए जानते हैं के अमरकंटक से उद्गम मां नर्मदा, श्रावण मास और कवर्धा से निकलने वाली बोल बम कांवड़ियों के बारे में ।
कैसे एक व्यक्ति को मिली मां नर्मदा से प्रेरणा, जिसे थी अपने संस्कृती विरासत को संजोने की ललक, जो घूमता था अपने साथियों के साथ नदियों के उद्गम की तलाश में बीहड़ सुदूर पहुंच विहीन घने जंगलों में, आखिर कैसे शुरू हुई कवर्धा से कांवड़ यात्रा की परंपरा जो आज धर्मनगरी से शुरू होकर, निकटवर्ती जिलों के साथ साथ लगभग छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में धर्म और शिवभक्ति का प्रतीक बन गई, आखिर कौन था वह शख्स?

वो शख्स कोई और नहीं बल्कि कवर्धा के प्रगाढ़ शिव भक्त, धर्मनगरी कवर्धा के भविष्यदृष्टा स्व. पण्डित अर्जुन प्रसाद शर्मा ही थे । जिन्होंने अपने जीवन काल को ईश्वर भक्ति से ओतप्रोत होकर जन साधारण की सेवा और कवर्धा के विरासतों को खोजने में समर्पित कर दिया । कवर्धा की जीवनदायिनी संकरी नदी की उद्गम की खोज हो, भोरमदेव के पुरातात्विक जानकारी हो या पंचमुखी बूढ़ा महादेव में आज पर्यंत तक चल रहा सीताराम नाम का संकीर्तन हो या गौ सेवा हो। कवर्धा के लोगों में धर्म की अलख जगाने वाले और आस्था को प्रगाढ़ करने वाले स्व. श्री पण्डित अर्जुन प्रसाद शर्मा ही थे ।

नदियों के उद्गम स्थलों को खोजने के प्रति उनके प्रकृति प्रेम और अपनी धार्मिक यात्रा के दौरान सन 1989 के लगभग वे मां नर्मदा के उद्गम स्थली अमरकंटक गए थे । वही उन्हें मां नर्मदा से प्रेरणा मिली और राजा भागीरथी की भांति स्व. पण्डित अर्जुन प्रसाद शर्मा ने पुराणों में वर्णन सर्व कष्ट निवारिणी पाप मुक्तिदायिनी मां नर्मदा के अविरल जल की धारा को अनंतकाल के लिए धर्मनगरी कवर्धा के धरती से जोड़ दिया ।
भले ही मां नर्मदा की जल की धारा कवर्धा से होकर नही गुजरती लेकिन साल के श्रावण मास में मां नर्मदा की जल की धारा से धर्मनगरी कवर्धा शिवमय हो जाता है ।
सन 1989 में अपनी धार्मिक यात्रा के तुरंत बाद उन्होंने अपने साथियों और परम उत्साही शिवभक्तों के साथ मिलकर तय किया की मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से कवर्धा तक की पैदल यात्रा किया जाए और मां नर्मदा के पवित्र जल को बूढ़ा महादेव में लाकर जलाभिषेक किया जाए । तब 1989 में ही मां काली शंकर सेवा समिति के नाम से बोल बम कावरिया यात्रा के सात सदस्यों ने इसकी शुरवात की जिसके अनुसरण में अब प्रतिवर्ष हजारों लाखों कांवरिया अमरकंटक से कवर्धा के बूढ़ा महादेव तक की पदयात्रा कर जलाभिषेक करते हैं।

यूनाइटेड न्यूज ऑफ़ एशिया धर्मनगरी कवर्धा के भविष्य दृष्टा स्व. श्री पण्डित अर्जुन प्रसाद शर्मा को नमन करता है । कवर्धा के इतिहास में वे हमेशा मां गंगा को धरती में अवतरित करने वाले भागीरथी के समान चिरकाल तक स्मरण किए जायेंगे।
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