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विस्तृत समीक्षा: आकर्षक और आकर्षक थी, उतनी अच्छी नहीं थी ‘तमिल रॉकर्ज’

विस्तृत समीक्षा: सोनी लिव पर रिलीज वेब सीरीज “तमिल रॉकर्ज” देखने के बाद ये पता चला कि ये घटिया वेबसाइट तमिल रॉकर्स पर एकवाले की कहानी बनाने की कोशिश की गई है। तमिल रॉकर्ज एक सत्य घटना से प्रेरित होकर बनाई गई वेब सीरीज है। इस सीरीज का काफी प्रचार किया गया था और अन्य मूल सीरीज तमिल में बनी हुई है और चेन्नई के उपजी द्वारा संचालित मूवी मार्केट्स की सेलेक्ट स्टोरी पर आधारित है, इसलिए इंटरनेट पर भी यह बहुत लोकप्रिय है।

जब इसका हिंदी संस्करण सोनी लाइव जारी किया गया तो इसे काफी लोगों ने देखा, लेकिन उन्हें देखने में बहुत कम समय लगा, क्योंकि यह एक शानदार क्लासिक स्टोरी बन सकती थी, लेकिन अंतिम 2 एपिसोड की कहानी को जिस तरह से देखा गया है, उसे देखने के बाद ऐसा लगता है कि तमिल रॉकर्ज की बैकस्टोरी और अधिक दिखाई देने लगी थी। बिजनेस, सीरीज अच्छी है, देख सकते हैं।

तमिल में फिल्मों की आस्थागीरी भक्ति से भरपूर है। सितारों के फैन क्लब नहीं होते बल्कि मंदिर होते हैं। कई फिल्मी सितारों ने राजनीति की तरफ कदम बढ़ाये और सफल भी हुए। एमजी रामचन्द्रन से लेकर चौधरी, कमल हासन और अब अजित कुमार, विजय या धनुर्धर; सभी के प्रति दर्शकों की दीवानगी का वजन उठाना मुश्किल है। स्टूडेंट की लाइफ से जुड़े किस्सों पर किताब लिखी जा सकती है और भी तमिल फिल्म का फर्स्ट डे फर्स्ट शो मार्च निकाल कर, बाजे गाजे के साथ थिएटर में जाना, फिल्म स्टार के सौ फुट से ज्यादा रिलीज कट आउट पर दूध से अभिषेक करना, फिल्म पूजा से पहले शुरू हुई और फिर फिल्म शुरू होने के बाद तालियां, सीटियां, नाच गाना और परदे पर क्रिसमस की बहार आ गई।

इसी आशिक की वजह से कई बार वह डायरेक्ट और डायरेक्टर के ब्रेन स्काई पर पहुंच गए और उन्होंने नए कलाकारों के साथ बुरा व्यवहार भी किया। ऐसे ही एक किस्से की वजह से पायरेट की गई फिल्म फ्लॉप हो गई और फिल्मों में काम करने के इरादे से एक स्पेशलिस्ट ने कमाल खा ली थी कि वो उस प्रोजेक्ट की किसी भी फिल्म को नहीं चलने देंगे। इसके लिए आप अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक वेबसाइट बना सकते हैं – तमिल रॉकर्स। इस वेबसाइट पर हर नई फिल्म डाउनलोड करके देखने के लिए मुफ्त उपलब्ध कराई गई थी। इनमें से किसी एक ने एक रात पहले उस फिल्म को रिलीज कर दिया था और डिजिटल कैमरे से स्क्रीन पर चल रही फिल्म को रिकॉर्ड कर लिया था.. रिकॉर्ड होने के तुरंत बाद इसे तमिल रॉकर्ज की वेबसाइट पर डाल दिया गया था दुनिया भर के लोग इसे डाउनलोड करके देखें आकर्षक।

फिल्म को इस वजह से हुआ नुकसान. कुछ डेवेलियन नक्षत्रों ने संयुक्त सरकार से दरख्वास्त की और पुलिस की मदद से तमिल रॉकर्स के संस्थापकों को पकड़ने की मुहिम शुरू की। कई प्राचीन तक तमिल रॉकर्स कंप्यूटर और इंटरनेट के कलाकारों का इस्तेमाल कर के, पुलिस से बचते रहे और वेब साइट पर अलग-अलग तरह से बढ़ावा देते रहे। अंतिम पुलिस ने भी कंप्यूटरों को समझा और धीरे-धीरे मंदी का कसाना शुरू किया। तमिल रॉकर्स फाइनल में पकडे गए। हालाँकि तमिल रॉकर्स की वेब साइट बंद हो गई, लेकिन उनके समर्थकों ने कई और वेब साइटों पर यह काम करना शुरू कर दिया।

कई सारे तार में उचला के हर तार को अलग-अलग कर के एक कहानी बताई गई है, जिसमें से मूल कहानी को इतनी कम स्क्रीन टाइम में दिया गया है कि हम भूल गए हैं कि तमिल रॉकर्ज का असली मकसद क्या था। , चेन्नई के बर्मा बाजार में पायरेट की गई फिल्में और सीडी सप्लाई करने वाले लोग थे, जिन्होंने एक टूटी-फूटी कहानी वाली टोरेंट वेबसाइट बनाकर हर नई फिल्म का डिजिटल प्रिंट मुफ्त अपलोड कर दिया था। वो कहानी पूरी सीरीज में बहुत ही छोटे-छोटे अंदाज में दिखाई दी है। क्राइम पर बनी वेब सीरीज में क्राइम किस तरह होता है या किसी स्पेशलिस्ट ने अपना क्राइम का सौदा कैसे शुरू किया और उसे कहां ले जाया गया, ये बातें विस्तार से सामने आईं।

तमिल रॉकर्ज में पुलिस अधिकारी रूद्र (अरुण विजय) और उनकी पत्नी, फिर उनके अपहरण और हत्या से उपजी रूद्र पर फोकस करने की कोशिश की गई है। अरुण अच्छे कलाकार हैं और उन्हें अपना किरदार भी ठीक से मिला है लेकिन ये मूल कहानी नहीं बन पाई। असल में ये है कि असल जिंदगी में तमिल रॉकर्स को आम जनता बहुत पसंद करती थी क्योंकि नीनी की वजह से वे हर नई फिल्म डाउनलोड कर देख सकते थे और टिकट/पॉपकॉर्न/कोल्ड ड्रिंक के पैसे बचाए थे। इस सीरीज में उन्हें लगभग विलन और गलत काम करने वाला बताया गया है। बात तो सही है लेकिन आम जनता की सोच को सीरीज़ दर्शकों से अलग रखा जाता है।

तमिल रॉकर्स में जे साबू जोसेफ की एडिटिंग बहुत ही शानदार थी लेकिन जब स्क्रिप्ट में ही सात्विकता हो तो एडिटिंग क्या कर रही थी। एडिटिंग फिर भी है उम्दा क्योंकि कई सीन्स में एडवेंचर बना हुआ है। क्लाइमेक्स की तरफ से भागते हुए जब रूद्र, तमिल रॉकर्ज के चिपने केबॉय पर छापे मारे जाते हैं और अंत में उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो वो पूरा सीक्वेंस ज़बर्डस्ट एडिटिंग का कमाल है। सिनेमेटोग्राफर बी राजशेखर का काम भी बहुत अच्छा है, खासकर रात के अंधेरे के दृश्यों में वे लाजवाब लाइटिंग की मदद से थिएटर के अंदर के दृश्य, फॉर्म हाउस के दृश्य और चेस सीक्वेंस में कैमरे से श्रृंखला की गति बनाए रखते हैं। अरिवल्गन का निर्देशन भी मंजा हुआ लगता है।

जब तक कहानी का फोकस हैकर्स पर रहता है तब तक कहानी दिलचस्प बनी रहती है। जैसे ही कहानी, फिल्मी फिल्में और उनकी बैक स्टोरी पर फोकस करना लगता है, कहानी बोर करना लगता है। हंसल मेहता की सीरीज 1992 – हर्षद मेहता की कहानी में फोकस हर्षद के काम करने के तरीके पर रखा गया था और हर्षद जैसा बड़ा आदमी बना, उनके आचार विचार और व्यवहार में किस तरह का बदलाव आया, इस कहानी को रोचक बनाया गया था . तमिल रॉकर्ज की बैक स्टोरी में बड़े ही छोटे से तरीके से दर्शकों को कहानी से जुड़ने का मौका ही नहीं मिला। इसी वजह से ये लंबी वेब सीरीज छोटी पंपिल हो गई है। देखने के लिए थोड़ा धैर्य चाहिए, बाकी सीरीज मनोरंजक है।

विस्तृत रेटिंग

कहानी:
स्क्रिनप्ल:
डायरेक्शन:
संगीत:

टैग: समीक्षा, वेब सीरीज

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Saurabh Namdev

| PR Creative & Writer | Ex. Technical Consultant Govt of CG | Influencer | Web developer
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