
हिंदू शास्त्रों के अनुसार परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है. कहा जाता है कि परशुराम अपनी माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे. पिता के कहने पर उन्होंने अपनी माता की गर्दन धड़ से अलग कर दी थी.वो रेणुका और सप्तर्षि जमदग्नि के पुत्र थे.परशुराम का जन्म प्रदोष काल के दौरान हुआ था।
परशुराम जन्मोत्सव भगवान विष्णु के छठे अवतार की जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है. यह वैशाख मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को पड़ती है. ऐसा माना जाता है कि परशुराम का जन्म प्रदोष काल के दौरान हुआ था और इसलिए जिस दिन प्रदोष काल के दौरान तृतीया होती है उस दिन को परशुराम जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
वो रेणुका और सप्तर्षि जमदग्नि के पुत्र थे. वह द्वापर युग के अंतिम समय तक जीवित रहे थे. परशुराम को हिंदू धर्म के सात अमर लोगों में से एक माना जाता है.परशुराम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी जिसके बाद उन्हें वरदान के रूप में एक फरसा मिला था।
परशुराम जन्मोत्सव शुभ मुहूर्त
परशुराम जन्मोत्सव यानी अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त होता है. इसलिए इस दिन किसी भी कार्य को करने के लिए किसी तरह के पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती है. इस बार परशुराम जन्मोत्सव पर एक साथ कई विशेष योग बन रहे हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्योदय से लेकर सुबह 09 बजकर 24 मिनट तक आयुष्मान योग, सुबह 11 बजकर 53 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस शुभ मुहूर्त में किया गया पूजा पाठ विशेष फलदायी होता है.
परशुराम जन्मोत्सव
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी अक्षय तृतीया 22 अप्रैल को सुबह 07 बजकर 49 मिनट से शुरू होगी. जिसका समापन अगले दिन 23 अप्रैल को सुबह 07 बजकर 49 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार इस बार परशुराम जन्मोत्सव 22 अप्रैल को मनाई जाएगी.
आखिर क्यों परशुराम ने किया था अपनी ही मां का वध
पौराणिक कथाओं की मानें तो, भगवान परशुराम माता रेणुका और ॠषि जमदग्नि की चौथी संतान थे. वे आज्ञाकारी होने के साथ-साथ उग्र स्वभाव के भी थे. भगवान परशुराम को एक बार उनके पिता ने आज्ञा दी कि वो अपनी मां का वध कर दे. भगवान परशुराम बेहद आज्ञाकारी पुत्र थे. उन्होंने अपने पिता के आदेशानुसार तुरंत अपने परशु से अपनी मां का सिर उनके धड़ से अलग कर दिया.
यह देखकर ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र से बेहद प्रसन्न हुए और भगवान परशुराम के आग्रह करने पर उनकी मां को पुन: जीवित कर दिया.
आइए जानते है इसके पीछे की पूरी कहानी-
एक बार की बात है जब भगवान परशुराम की मां स्नान करने सरोवर में गई थीं. संयोगवश वहां राजा चित्ररथ नौकाविहार कर रहे थे. उन्हें देख ऋषि पत्नी के हृदय में विकार उत्पन्न हो गया और वह उसी मनोदशा में आश्रम लौट आईं. आश्रम में ऋषि जमदग्नि ने जब पत्नी की यह विकारग्रस्त दशा देखी तो उन्हें अपनी दिव्यदृष्टि से सब ज्ञात हो गया. जिसकी वजह से ऋषि बेहद क्रोधित हुए.
उन्होंने अपने पुत्रों को आदेश देते हुए कहा कि अपनी मां का सिर काट दो. उनकी इस आज्ञा का पालन किसी भी पुत्र ने नहीं किया लेकिन जब पिता ने ये आदेश परशुराम को दिया तो उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी मां का सिर काट दिया. परशुराम से प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने उसे मनचाहा वर मांगने के लिए कहा. इस पर परशुराम ने अपने पिता से माता को पुनः जीवित करने का वरदान मांगा.
पंडित सुधांशु तिवारी
एस्ट्रोलॉजर/ टैरो कार्ड विशेषज्ञ













