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लोकसभा चुनाव 2024: अगले साल होने वाले 15 वें चुनाव के लिए एकमत होने की कोशिश होने लगी। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस सहित सभी सहयोगी दलों के बजट सत्र के दौरान पत्रकार गौतम अडानी को लेकर सामने आई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर हैं। अडानी और राहुल गांधी की सांसद जाने के मामले में लंबे समय से अपवाद-बिखरा एक साथ नजर आए। सभी एक-दूसरे के साथ एक सुर में मिले, जिससे पूरे सत्र के दौरान संसद लगातार स्थगित हो रही थी। विरोध प्रदर्शन होने के बाद भी सरकार ने आस-पास की मांगों की मांग नहीं की, लेकिन इस बीच संबंध को अडानी मामले में बड़ा झटका लगा। दरअसल, एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने विपक्षी पार्टियों सहित जेसीपी की मांग को लेकर कांग्रेस अलग हो गई है। मौन का यह कदम विपक्षी एकजुटता के लिए चुनाव से पहले ठीक पहले अहम झटका माना जा रहा है।
पूरा एक तरफ, पक्षपाती दूसरी तरफ
सभी विरोधी दल एनसीपी के प्रमुख शरद पवार की तरफ उम्मीद की निगाह से देखते हैं। इसके पीछे का कारण महाराष्ट्र में कुछ साल पहले एक दूसरे से विपरीत विचारधारा वाले पक्षों को साथ लाना है। एनसीपी प्रमुख की वजह से ही महाराष्ट्र में बीजेपी, कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई। इसी वजह से दिसंबर के चुनाव को लेकर भी विपक्षी दल उम्मीद कर रहे थे कि शरद पवार अपने अनुभव से निश्चित रूप से एकता रखने पर दांव लगा रहे हैं और बीजेपी के खिलाफ कोई बड़ा विकल्प जनता को दे रहा है, लेकिन ऐसा होने से पहले ही निर्णय का पूरा खेल बिगड़ गया । ‘एनडीटीवी’ को दिए एक इंटरव्यू में शरद पवार ने विस्तार से अदानी मामले पर बात की। उन्होंने साफ किया कि मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से ही करवाई जानी चाहिए, नाकि जेपीसी की। उल्लेखनीय है कि पूरे सत्र के दौरान जेपीसी पर ही विज्ञापन दिया जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा समिति बनाए जाने के बाद भी जेपीसी की मांग कर रही है। पवार ने इंटरव्यू में कहा, ”विपक्ष ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को जरूरत से ज्यादा अहमियत दी। इस कंपनी के बारे में ज्यादा किसी को भी आसान नहीं है। यहां तक कि इसका नाम भी नहीं सुना।” प्रेत ने आशंका जताई है कि इस मामले में एक औद्योगिक समूह का निशाना बनाया गया है। पार्टनरशिप द्वारा अडानी समूह का समर्थन किया जा सकता है।
अडानी मुद्दों को क्यों कोई भी हाल में छोड़ना नहीं चाहता?
जनवरी की आखिरी में अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद ही इस मामले में तीखा पर हमला बता रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, टीएमसी की महुआ मोइत्रा समेत कई विपक्षी नेता स्पॉट हुए। यही नहीं, राहुल गांधी सबसे पहले अडानी के माध्यम से सेंटर सरकार को घोटालों में आए। इसी वजह से जब हिंडनबर्ग रिपोर्ट आई तो साफ हो गया कि मुद्दों की कमी और एकता से जूझ रहा है शायद शायद ही इस मुद्दे को हाथ से जाने दे। राजनीतिक विशेषज्ञ भी चुनाव से पहले हिंडनबर्ग रिपोर्ट के सामने आने की वजह से जिम्मेदार को ‘बैठे-बिठाए’ सरकार पर फोकस साधने का बड़ा मामा हाथ लग गए। लंबे समय से किसी ऐसे मुद्दे की तलाश में था जिसके माध्यम से वह मिडिल क्लास तक पहुंच सके। इसी वजह से राहुल गांधी, संजय सिंह सहित अन्य संगठनों ने एलआईसी, शिकायत, ईपीएफओ आदि का उल्लेख किया और कहा कि इसका पैसा अडानी की उद्यम में निवेश किया जा रहा है। सबसे ज्यादा एकता इस मुद्दे के जरिए घर-घर तक पठ बनाने की कोशिश में लगी है, लेकिन अब अनिश्चितता के अलग रुख की वजह से उनकी एकता पर जरूर सवाल खड़े होने लगे।
कांग्रेस सहित विपक्षी दल क्या कह रहे हैं?
शरद पवार का साक्षात्कार सामने आने के बाद विपक्षी दलों में बवाल मच गया। कांग्रेसी कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट करते हुए मीडिया पर भी हमला बोला। उन्होंने, ”अडानी के स्वामित्व वाले चैनल ने अडानी के दोस्तों का साक्षात्कार लिया और बताया कि कैसे उन्हें लक्षित किया जा रहा है। भारतीय मीडिया ज़िंदाबाद- आप वास्तव में एक दुर्लभ प्रजाति हैं।” टीएमसी नेता ने ट्वीटर के साथ शरद के साक्षात्कार का खुलासा भी किया। वहीं, कांग्रेस ने पवार के बयानों को उनके निजी विचार बताया। कांग्रेस ने कहा कि उसके सहयोगी एनसीपी का विचार हो सकता है, लेकिन 19 समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों का मानना है कि अडानी समूह द्वारा लगाए गए आरोप वास्तविक और बहुत गंभीर हैं। कांग्रेस ने यह भी कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सहित सभी 20 समान विचारधारा वाले विपक्षी दल एकताबद्ध हैं और संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए ‘भाजपा के हमलों’ से एक साथ जीतेंगे। कांग्रेस के बयानों से स्पष्ट है कि पार्टी उम्मीद कर रही है कि भले ही अडानी मामले में विपक्षी पार्टियों के साथ नहीं हैं, लेकिन वे भाजपा के खिलाफ निश्चित रूप से संबंध रखेंगे।
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