
छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहां जाने वाला भोरमदेव पर्यटन स्थल पर आज करोड़ों रुपए खर्च करने के पश्चात भी वह प्राकृतिक एवं नैसर्गिक आनंद की अनुभूति नहीं होती जो इसे पर्यटक स्थल की घोषणा करने से पूर्व की थी| तब यह स्थल धार्मिक एवं दर्शनीय था | धार्मिक एवं दर्शनीय तो आज भी है किंतु नैसर्गिक व प्राकृतिक मनभावन दृश्य जिससे सुख शांति की अनुभूति होती थी जिसमें अब परिवर्तन आ गया है|
भोरमदेव भगवन शिव का मंदिर होने के साथ प्राचीन स्थापत्य कला का बेजोड़ खजाना था जिसमें अद्भुत शिल्पकला थी एवं सिद्धपीठ भी | सतपुड़ा पहाड़ की मैंकल श्रेणी की तराई में घने वनों से आच्छादित प्रकृति की गोद में अनुपम छटा बिखेर रहा था | वर्षों पुरानी साल वृक्षों से एवं घने वन अच्छादित होने एवं पर्याप्त जलाशय होने के कारण हिंसक प्राणियों की हुंकार से रात्रि को कोई भी व्यक्ति विश्राम नहीं कर सकता था | तब हिंसक प्राणी और वन एक दूसरे के संरक्षक थे | पूरा अंचल अत्यंत शांतिपूर्ण वातावरण में होने के कारण यहां तांत्रिक पूजा भी हुआ करती थी | मंदिर के द्वार पर भैरव बाबा की मूर्ति का मुंह में नारियल भेंट दिए जाते थे किंतु कालांतर में अत्यंत मुख छोटा होता गया| हनुमान जी के दाहिने हाथ की हथेली में शिवलिंग भी रामायण कालीन इतिहास की याद दिलाता है जो हनुमान जी द्वारा ज्योतिर्लिंग भगवान राम के सेतुबंध के पूर्व की याद दिलाता है | वनों का राष्ट्रीयकरण हुआ वनों के साथ-साथ वन्य प्राणियों का भी शिकार होते गया एवं नैसर्गिक से कृत्रिमता की मोह से इस अंचल का स्वरूप बदलता जा रहा है।
अब सुकून एवं शांतिपूर्ण नैसर्गिक वातावरण नहीं रह गया जो आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व था मंदिर के सामने स्थित सरोवर में काफी संख्या में सहस्त्रदल कमल पंखुड़ी के दुर्लभ कमल यह के प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगाते थे| लगभग 2 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में मड़वा महल के कलात्मक ढंग से महत्व करें गए थे आज लगभग 30 ही रह गए हैं | शेष चोरी होते चले गए यह विवाह मंडप था | भोरमदेव के अतिरिक्त यहां दिया बार पहाड़ी एवं हरमों ग्राम स्थित किला आज भी अपनी कहानी बयां कर रहा है साथ ही मंदिर के पूर्वाभ दरवाजे पर सफेद नागराज के दर्शन महाशिवरात्रि के अवसर पर हुआ करते थे सिद्ध पीठ होने के कारण मनोकामना पूर्ण होने पर बकरेकी बलि चढ़ाई जाती थी जो अत्यंत प्रयास के पश्चात पूर्णता बंद कर दी गई।
मंदिर स्थित तालाब में मेले के अवसर पर यात्रियों की इस सरोवर से भोजन बनाने हेतु बर्तन भी उपलब्ध होते थे किंतु कालांतर में चोरी होने के कारण बंद हो गए | किवदंती को मान लिया जावे तो इस सरोवर में पारस पत्थर था जिसका पता यहां के राजा ने हाथी के पैरों में सांकल डालकर घुमाया था। और पता करने की कोशिश की थी |
11 वीं सदी से अब 21वीं सदी तक दियाबार एवं हरमों ग्राम में स्थित किला आज भी सुरक्षित बताया जाता है कि दीया बार एक पहाड़ी है जो कि दिए के आकार की है इसमें भैस की चर्बी को भर दिया जाता था इससे 12 माह प्रकाश होता था जो कि हरमों के किले से दिखाई देता था जो कि सैनिकों के लिए एक संकेत का काम करता था।
अश्चर्यजनक तथ्य यह है कि ग्राम हरमों के खेत में 11वीं सदी की भूमिगत एक बावली है जहां घोडे पानी पीते थे सुरक्षित है यह पुरा क्षेत्र भी वनाच्छादित था किंतु बदले समय के साथ गयाब होते चले गए एवं लोग रहने लगे कृषि होने लगी।
कवर्धा से पिपरिया लगभाग 11 किलोमीटर की दुरी पर स्थित नर्मदा का झिरना कुंड है इसमें केंवड़ा का काफी घना झुंड था जो कि दूर रह चलते यात्रियों को आकर्षित करता था | अत्यंत मनोहरी लोक लुभावन ठंडक प्रदान करने वाले पुरे जिले में अकेला एक ऐसा क्षेत्र था | रखखव के अनुभव में अब नष्ट हो गया है इस कुंड के पानी में कफी बड़े सर्प रहते थे, लोक निर्माण विभाग के ठेकेदारों ने रिपेयरिंग के नाम पर इस कुंड को कांक्रीट सीमेंट कर इस कुंड की अस्तित्व को लगभग समाप्त ही कर दिया है जिसे नर्मदा का जल स्त्रोत बंद हो गया है केवड़ा सूखते चले गए हैं और विशाल सर्प गायब हो गए हैं अब वहां पर बोर से पानी भरा जाता है किंतु नर्मदा कुंड आस्था के नाम पर आज भी मेला लगता है |
इसी प्रकार सहसपुर लोहारा में स्थित बावली भी एक दर्शनीय स्थान है वनांचल की याद करें तो आज रोना आता है हरियाली से घने वृक्ष समाप्त हो गए हैं अब नंगे पहाड़ खड़े हैं कवर्धा से तरेगांव मार्ग के दोनों और अत्यंत घने वृक्षों की हरियाली जहां मन को मोह लेती थी अब कृषि होने लगी है | जिला बनने के पश्चात आश्चर्यजनक परिवर्तन देखकर अब मन में अत्यंत पीड़ा होती है कहां है वह मनमोहक दृश्य जहां शहर की चकाचौंध गर्म वातावरण से छुटकारा मिलता था |वन विभाग के रेस्ट हाउस सूर्योदय एवं सूर्यास्त को देख कर भूल जाते थे कि हम किस दुनिया में हैं।
ग्राम छपरी से सरोधा जलाशय मार्ग बनने के पहले 7 किलोमीटर तक कच्ची सड़क के किनारे मैकल पर्वत श्रेणी की तराई के नीचे वृक्ष एवं मौसम आज भी जब गर्मी एवं शहर के कोलाहल से छटपटाहट लगती है तो पुरानी स्मृतियां ताजा हो उड़ती है किंतु अब आनंद वहां भी नहीं है क्योंकि वह नष्ट हो गए हैं एवं इस कित्रिम मशीनी युग में सभी आज रहना चाह रहे हैं |
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