
UNITED NEWS OF ASIA. रिज़वान मेमन, धमतरी | धमतरी जिले के टायगर रिज़र्व फॉरेस्ट क्षेत्र में बसे 34 ग्रामीण गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। इन गांवों में न सड़क है, न बिजली की नियमित आपूर्ति, न पक्का मकान, और न ही शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी प्राथमिक व्यवस्थाएं।
न वादा निभा रहे जनप्रतिनिधि, न जवाब दे रहा सिस्टम
ग्रामीणों का साफ कहना है –
“हमने तो ज़िंदगी जंगलों में काट दी, लेकिन अब हमारे बच्चों को तो वो अधिकार मिले जो संविधान ने हमें दिए हैं।”
लेकिन न जनप्रतिनिधि सुध ले रहे, न अधिकारी, और न ही शासन की योजनाओं का लाभ इन तक पहुंच रहा है।
टायगर रिजर्व के नाम पर विकास पर लग गई रोक
धमतरी का सीतानदी, अरसीकन्हार और रिसगांव रेंज, टायगर रिजर्व क्षेत्र में आता है, जिसका मुख्यालय गरियाबंद में स्थित है। इन गांवों के निवासी वनवासी आदिवासी समुदाय से हैं, जो पीढ़ियों से जंगल पर निर्भर हैं।
लेकिन आज हालात ये हैं:
बिजली – क्रेडा विभाग ने सोलर पैनल तो लगाए, लेकिन रखरखाव के अभाव में बिजली मिलना ही मुश्किल है।
शिक्षा – आदिवासी छात्रावासों का निर्माण वन विभाग ने रोक दिया।
पक्का मकान – रेत निकालने पर रोक होने से प्रधानमंत्री आवास योजना भी अधर में।
धार्मिक स्थल – अंगिरा ऋषि मंदिर में शेड लगाने तक पर रोक।
विकास की हर कोशिश पर ‘वन नियम’ की दीवार!
जब भी ग्रामीणों को मूलभूत सुविधा देने की बात आती है, वन विभाग का जवाब होता है – “एनओसी नहीं है।” सवाल यह है कि एक गरीब, वनांचलवासी आदिवासी आखिर पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी लाएगा कैसे?
बिना सड़क, अस्पताल और स्कूल के कैसे जिएंगे ये लोग?
इन गांवों में कच्चे रास्ते, नदी-नालों की भरमार और पुलों का अभाव है। बारिश के दिनों में गांव टापू बन जाते हैं। ज़रा सोचिए –
जब किसी को प्रसव पीड़ा होती है,
या किसी बच्चे को तेज़ बुखार चढ़ता है,
तो एंबुलेंस या वाहन गांव तक पहुंच ही नहीं पाते।
न बिजली, न डिजिटल इंडिया
आजादी के 77 साल बाद भी, इस क्षेत्र में स्थायी बिजली नहीं है। क्रेडा की सौर ऊर्जा व्यवस्था भी शोपीस बन गई है। कभी एक घंटे, कभी आधा घंटा – और कभी दिनभर बिजली नहीं। ऐसे में सरकार का “डिजिटल इंडिया” सपना यहां सिर्फ पोस्टर बनकर रह गया है।
आवाज़ उठाएगा कौन?
ग्रामीण कहते हैं –
“हर बार सुनवाई के नाम पर टाल दिया जाता है। अब हमें न सरकार पर भरोसा रहा, न सिस्टम पर।”
जब भी सड़क, स्कूल, पानी, छात्रावास या पक्का मकान की मांग होती है, तो जवाब मिलता है –
“यह टायगर रिजर्व क्षेत्र है, हम कुछ नहीं कर सकते।”
प्रधानमंत्री आवास योजना भी लाचार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना – हर गरीब को पक्का घर। लेकिन यहां के ग्रामीण कहते हैं –
“रेत नहीं मिलती, ट्रैक्टर जब्त कर लिया जाता है। तो घर कैसे बनेगा?”
योजना तो है, पर संसाधन नहीं, मंज़ूरी नहीं, व्यवस्था नहीं।
अब सवाल सरकार से:
क्या वनांचल में रहने वाले भारतीय नागरिक नहीं हैं?
क्या संविधान में दिए गए मूल अधिकार केवल शहरों और मेन रोड वाले गांवों के लिए हैं?
क्या टायगर रिजर्व के नाम पर मानवाधिकार कुचलना उचित है?
समाप्त नहीं, ये शुरुआत है…
धमतरी के जंगलों में बसे ये 34 गांव “विकास” नामक शब्द से अब भी अनजान हैं।
सरकार, जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के लिए यह जागरूकता और जवाबदेही का समय है।
इनकी आवाज़ दबे नहीं, गूंजे – ताकि बदलाव की राह बने।
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