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12 मार्च 1993 मुंबई ब्लास्ट: 30 साल पहले मुंबई पर हुआ था सबसे बड़ा हमला, क्या है इब्राहिम और चूड़ियों का कनेक्शन

दिनांक 12 मार्च 1993 की थी। दोपहर के वक्त मुंबई में पहला धमाका हुआ। अभी भी लोग कुछ समझ रहे हैं कि शहर के अलग-अलग हिस्सों में एक के बाद एक कई धमाके दिखने लगे। ये धमाका अगले दो घंटे तक करीब 3:40 तक होते हैं।

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के बारे में कहा जाता है कि यहां वक्त कभी थमता नजर नहीं आता है। 24 घंटे सातों दिन चलने वाले शहर में नौकरी करने वाले और भागदौड़ भरी जिंदगी के साथ ही अपनी छाती पर सैकड़ों चोट सहे हैं। लेकिन पहली बार एक गंभीर चोट आज से 30 साल पहले मिली। दिनांक 12 मार्च 1993 की थी। दोपहर के वक्त मुंबई में पहला धमाका हुआ। अभी भी लोग कुछ समझ रहे हैं कि शहर के अलग-अलग हिस्सों में एक के बाद एक कई धमाके दिखने लगे। ये धमाका अगले दो घंटे तक करीब 3:40 तक होते हैं। इन धमाकों से मायानगरी मुंबई पूरी तरह से दहल उठी। कई जगहों पर आग लग गई और चीख चीख चीख चीख।

मुंबई में 12 जगह धमाका हुआ

आतंक के उस पहले शुक्रवार के दिन मुंबई और भारत में पहली बार एक बड़ा आर्गनाइड और योजनाबद्ध हमला हुआ था। 12 मार्च 1993, शुक्रवार के दिन उस वक्त को मुंबई शहर का नाम दिया गया। हवा में कुछ तल्खी पहले से थी क्योंकि 3 महीने पहले इस शहर ने दंगे का दंश बढ़ाया था। दोपहर के 1:30 हो रहे थे। शहर में 12 अलग-अलग जगहों पर बम विस्फोट हुए। शेयरों में बदलाव की शुरुआत धमाके के साथ हुई। इसके साथ ही मायानगरी की रफ्तार पर ब्रेक लग गया। शेयर परिवर्तन की 28 मंजिला इमारत की पार्किंग में, दाई एक्स से लदी एक कार में असुरक्षित के माध्यम से धमाका हुआ। इसमें करीब 84 बेगुनाह लोगों की जान गई और 200 से ज्यादा जख्मी हुए। इसके बाद तो धमाकों का चिल ही शुरू हो गया। नरथी नाथ स्ट्रीट पर एक ट्रक में 2:15 मिनट पर दूसरा धमाका हुआ, जिसमें 5 लोगों की मौत हो गई। तीसरा बीजेपी भवन के पास लकी पेट्रोल पंप हुआ। इसमें चार लोगों की मौत हुई और 50 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। अब तक ये साफ हो चुका था कि मुंबई में बड़े पैमाने पर घमासान मच गया है। फिर नरीमनपॉइंट के पास एयर इंडिया की इमारत को बनाया गया। इसमें 20 लोग मारे गए और 80 से अधिक लोग घायल हो गए। इसके बाद वर्ली के एक डबल डेकर बस में हुए धमाके में 113 लोगों की मौत हो गई और 200 से अधिक लोग घायल हो गए। फिशरमैन कॉलोनी, ज्वेरी मार्केट, होटल सी रॉक, दादर का प्लाजा सिनेमा, होटल जुहू सेंटोर, यहां तक ​​की अपराधियों ने सहार अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर भी हाथ से ग्रेनेड फेंके। मुंबई शहर ने ऐसा कटलेआम फिल्मों में भी नहीं देखा था। मरने वाले थे 257 और घायलों की संख्या 713 थी। पुलिस अपनी नाकामी के मलबों में निशान और सबूत तलाश रही थी। मुंबई पुलिस के लिए भी इस तरह के सीरियल ब्लास्ट नई बात थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि शहर में अचानक ये क्या हो गया। 1 महीने के अंदर 400 लोगों को हिरासत में लिया गया।

मेमन परिवार का कनेक्शन

ये एक पहली ऐसी घटना थी जिसमें दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार इतनी मात्रा में ग्रुप एक्स का इस्तेमाल किया गया था। धमाके की जांच करने के लिए डीसीपी ट्रैफिक राकेश मारिया, अरुप पूरनायक और दर्शनीय आयुक्त एएस समारा की पहचान में तीन हाई लेवल टीम बनाई गई। रात 8:00 बजे यह सब कुछ हुआ और करीब 9:30 बजे पहला निशान भी मिला। पता चला कि वर्ली में फीलिंग से भरी एक वैन मिली है। 10:30 बजे तक पुलिस ने वैन को ज़ब्त भी कर लिया। वैन में सेवन एके-56 असाल्ट राइफल, 14 मैग्जीन, पिस्टल और फोर हैंड ग्रेनेड मिले। पता चला कि वैन किसी रुबीना सुलेमान मेमन के नाम पर है, जिसका पता था माहिम की अलहुसैनी इमारत। मारिया ने अपने सूचनार्थी से पूछा कि अलहुसैनी बिल्डिंग के मेमन कौन हैं तो जवाब मिला- टाइगर मेमन। पुलिस टाइगर मेमन के फ्लैट की तलाश में है। टाइगर मेमन के फ्लैट से एक पैकेज की चाबी मिली। टाइगर मेमन ने ही धमाके के लिए 23 लड़कों की टीम तैयार की थी। धमाके के बाद भारत नेपाल भाग जाने के लिए सभी को पांच-पांच हजार रुपये भी दिए गए। हमलों के लिए जिम्मेदार एक-एक शख्स को पकड़कर भारत आने की कोशिश शुरू हो गई और इसके लिए पुलिस की 162 लोगों की टीम तैयार की गई।

टेबल इब्राहिम ने अंजाम दिया

राकेश मारिया की किताब “लेट मी से नौ” के अनुसार 1992 के बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद मुंबई के कुछ मुस्लिम इसका बदला लेना चाहते थे। जिसके लिए दुबई में अंडरवर्ल्ड डॉन दिखाई दिया। पहले स्पष्टीकरण स्पष्ट करें। लेकिन कहा जाता है कि कुछ मुस्लिम स्त्रियां चूड़ियां छोड़ने के तौर पर चिंता करती हैं। ये बात को लग गई और उसने टाइगर मेमन और मोहम्मद दौसा के साथ मिलकर मुंबई को दहलाने की योजना बनाई।

चौक के मस्जिद में झूठ बोलने वाला

6 मार्च 1993 को महाराष्ट्र के श्रद्धालुओं का शरद ताज शरद को एक बार फिर मिला। तब का वो दौर सबसे कठिन था क्योंकि तभी सीएम खुले के सामने मुंबई धमाकों ने बहुत बड़ा संकट खड़ा कर दिया। शब्दावलियों को लेकर शरद ने अपनी जीवनी ‘ऑन माई टर्म्स’ में कई खुलासे किए। पवार ने इसमें 1993 में चौथी बार प्रमुख मंत्री बनने के बाद बम धमाकों को लेकर जिक्र किया है। किताब के अनुसार, प्राथमिकी से जुड़ी परेशानियां थीं और शांति लाना चाहते थे। मुंबई में जिन 11 जगहों पर धमाका हुआ था, वे सभी हिंदू बहुसंख्यक इलाके थे। घुसपैठ की मंशा यही थी कि विस्फोट के बाद सांप्रदायिक तनाव फैला। इसलिए उन्होंने टेलीविजन स्टूडियो से यह घोषणा की कि मुंबई में 11 नहीं बल्कि 12 बम विस्फोट हुए हैं। 12वां मस्जिद बांदेर इलाके में भी हुआ है। इससे दोनों समुदायों में यह संदेश गया कि समुदाय विशेष को नहीं बनाया गया है। पार्टनर ने बताया कि इसका उल्लेख उन्होंने जस्टिस श्रीकृष्ण कमिशन के सामने भी किया था और इस स्टेटमेंट का कमिशन ने आकांक्षा भी की थी।

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