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Chhattisgarh झीरम कांड के 11 साल…जख्म आज भी ताजा:शरीर में धंसे बुलेट पार्टिकल भूलने नहीं देते;मेटल डिटेक्टर से चेक करने पर बीप सुनाई देती है

UNITED NEWS OF ASIA. आज से ठीक 11 साल पहले 25 मई साल 2013 को देश के सबसे बड़े राजनीतिक हत्याकांड को अंजाम दिया गया था। बस्तर की झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को निशाना बनाया था। लाल आतंक के इस तांडव ने कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल और महेंद्र कर्मा जैसे फ्रंटलाइन नेताओं की हत्या कर दी गई थी।

नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतिम फैसला दिया। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार इसकी फिर से जांच कर सकती है, अगर ये वृहद षड्यंत्र से संबंधित है तब। ऐसे में अब फैसला प्रदेश की नई सरकार को लेना है कि वो कैसे इस मामले की जांच कराती है।

वहीं, इस नरसंहार के पीड़ित आज भी हिंसा के जख्म और सबूत साथ लेकर चलते हैं। रायपुर के श्रीनगर इलाके में रहने वाले कांग्रेस नेता शिव सिंह ठाकुर को भी इस हमले में गोली लगी थी। आज भी पीठ पर 7 जगहों में बुलेट पार्टिकल फंसे हुए हैं।

बुलेट पार्टिकल की वजह से MRI नहीं करा सकते
शिव सिंह कहते हैं कि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में मैं भी शामिल था। हमले के बाद चारों तरफ खून फैला हुआ था। नक्सलियों ने हमारे नेताओं और सुरक्षाकर्मियों को मार दिया था। इस दौरान मुझे भी 1 गोली और बुलेट के पार्टिकल लगे थे। उस समय जगदलपुर से मुझे सीधे रायपुर लाया गया था। डॉक्टरों ने गोली तो निकाल ली, लेकिन बुलेट के 7 पार्टिकल आज भी शरीर में धंसे हुए हैं।

शिव सिंह बताते हैं कि कुछ साल पहले उन्हे सर्वाइकल प्रॉब्लम की वजह से MRI कराने को कहा गया लेकिन बुलेट पार्टिकल की वजह से ऐन वक्त पर उनकी MRI रोक दी गई। इसके बाद एक्स-रे की मदद से आगे का इलाज किया गया।

सुरक्षा जांच के दौरान शक की निगाहों से देखते हैं अधिकारी

शहर से बाहर जाने के लिए अगर कोई फ्लाइट लेनी होती है, तब एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के दौरान मेटल डिटेक्टर से चेक करने पर बीप की आवाज आती है, जिससे सुरक्षा अधिकारी शक की निगाह से देखते हैं। शिव सिंह बताते हैं कि हर बार उन्हें इस सवाल का जवाब देना होता है कि उनके शरीर में बुलेट पार्टिकल कहां से आए।

कई जगहों पर इसके लिए उनसे डॉक्यूमेंट्स भी मांगे गए। इतना ही नहीं किसी बड़े नेता की सभा या आवास, जहां हाई सिक्योरिटी जोन है, वहां जाने पर भी सुरक्षाकर्मियों से कई बार इस बात को लेकर बहस हुई है। झीरम की घटना के बारे में बताने के बाद ही सुरक्षा अधिकारी प्रवेश देते हैं।

NIA ने बयान तक नहीं लिया और चार्जशीट दाखिल कर दी

झीरम मामले की जांच को लेकर शिव सिंह ठाकुर का कहना है कि NIA ने इस मामले की जांच किस तरह की, इसका अंदाजा इस बात से लगा लीजिए कि घटना का प्रत्यक्षदर्शी होने और मुझे गोली लगने के बाद भी NIA ने बयान तक नहीं लिया। शिव सिंह कहते हैं कि घटना को याद करके हम केवल दुखी हो सकते हैं। अब ईश्वर ही न्याय करेंगे।

झीरम हमला राजनीतिक षड्यंत्र- सुरेन्द्र शर्मा

इस नरसंहार में घायल हुए सुरेन्द्र शर्मा का कहना है कि ये एक राजनीतिक षड्यंत्र था, लेकिन इसके पीछे कौन थे ? इसका अब तक पता नहीं चला। जांच की कोशिश जरूर हुई, लेकिन न्याय नहीं मिला। दुनिया में किसी राजनीतिक संगठन पर इस तरह का ये पहला हमला था।

उन्होंने बताया कि गोली लगने के बाद उन्हें इलाज के लिए रायपुर लाया गया। घटना के अगले दिन सभी घायलों को देखने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी रायपुर पहुंचे थे।

झीरम हमले के दौरान काफिले में रहे कई कांग्रेस नेता अब BJP में हैं

मोतीलाल साहू – रायपुर ग्रामीण के विधायक मोतीलाल साहू झीरम की घटना के समय कांग्रेस में थे। इस हमले में साहू भी घायल हुए थे, लेकिन 2014 में ही वे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद 2018 और 2023 दोनों ही चुनावों में पार्टी ने उन्हें टिकट दिया। इस बार साहू ने जीत हासिल की।

अंजय शुक्ला – झीरम हमले में तब कांग्रेस में रहे अंजय शुक्ला घायल हुए थे। अंजय इस घटना के कुछ सालों बाद ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। अभी अंजय शुक्ला ने कोई चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन संगठन से जुड़कर काम कर रहे हैं।

अजय सिंह – कांग्रेस सरकार में युवा आयोग के सदस्य रहे अजय सिंह भी झीरम घाटी में परिवर्तन यात्रा के दौरान कांग्रेस के काफिले के साथ थे। कांग्रेस सरकार के दौरान अजय सिंह बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी से नाराज चल रहे थे। विवाद की वजह से उन्हें पार्टी से निष्कासित किया गया। एकतरफा कार्रवाई से नाराज अजय सिंह ने बीजेपी जॉइन कर ली।

चौलेश्वर चंद्राकर- झीरम हमले में घायल हुए चौलेश्वर चंद्राकर ने भी इसी साल बीजेपी का दामन थामा है। उन्होंने कहा कि झीरम हमले में घायल हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पार्टी नेताओं ने दरकिनार कर दिया। त्याग, तपस्या और बलिदान की पार्टी कही जाने वाली कांग्रेस आज वैसी नहीं रही।

चंद्राकर का कहना है कि सरकार में आने से पहले भूपेश बघेल ये कहते रहे कि झीरम के गुनहगारों के सबूत उनकी जेब में हैं। कांग्रेस की सरकार चली गई, लेकिन वे सबूत पेश नहीं कर पाए।

शिवनारायण द्विवेदी- झीरम हमले के बाद पीड़ितों की पार्टी में अनदेखी का आरोप लगाते हुए शिवनारायण द्विवेदी ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद बीजेपी जॉइन कर ली थी। बाद में जल्द ही बीजेपी से मोह भंग हो गया और फिर द्विवेदी आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए।

इसके बाद आम आदमी पार्टी से 24 सितंबर 2022 को कांग्रेस में वापसी की। द्विवेदी ने अब झीरम पीड़ित संघ बना लिया है। उनका कहना है कि पीड़ितों को न्याय की आस है और अब संघ के माध्यम से सरकारों तक अपनी मांग रखेंगे।

NIA की जांच में कहा गया- नक्सली आतंक फैलाने के लिए ऐसी वारदातें करते रहते हैं।

इस हत्याकांड की पहली बार जांच करने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने लगभग 3 दर्जन नक्सलियों को आरोपी बनाते हुए अपने निष्कर्ष में कहा था- नक्सली अपना आतंक फैलाने के लिए इस तरह की वारदातें करते रहते हैं।

 

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