कोरबाछत्तीसगढ़

कोरबा मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों की मेहनत लाई रंग, गंभीर हालत में भर्ती बच्चे को मिली नई जिंदगी

बीस दिन के इलाज के बाद बच्चा खुद से बैठने और बात करने लगा

UNITED NEWS OF ASIA. भूपेंद्र साहू, कोरबा । शासकीय मेडिकल कॉलेज सह जिला अस्पताल कोरबा में एक मासूम बच्चे को गंभीर हालत में भर्ती किए जाने के बाद डॉक्टरों की सतत निगरानी और मेहनत से उसे नई जिंदगी मिल गई। ग्राम जलके निवासी नीरज (उम्र 6 वर्ष) को 19 जून की शाम प्राइवेट हॉस्पिटल (NKH) से गंभीर कोमा की स्थिति में जिला अस्पताल लाया गया था। नीरज को साँस लेने में दिक्कत थी, धड़कन कमजोर थी और शरीर में जान न के बराबर थी।

अलर्ट मोड में डॉक्टरों की टीम
जैसे ही बच्चा इमरजेंसी में पहुँचा, पीडियाट्रिक विभाग की टीम ने वेंटिलेटर पर तत्काल इलाज शुरू किया। बच्चे को साँस देने के लिए अंबू बैग, धड़कन बनाए रखने के लिए आयनोट्रॉप्स दवाएं और इंट्रावेनस थेरेपी दी गई। उसके शरीर में कई समस्याएं एक साथ सामने आईं — सिकल सेल एनीमिया, हेपेटाइटिस, किडनी फेल्योर और जटिल वायरल इंसेफलाइटिस जैसे लक्षण।

तीन दिन वेंटिलेटर पर, फिर उम्मीद की किरण
नीरज को लगातार तीन दिन तक वेंटिलेटर पर रखा गया। इस दौरान उसे खून की उल्टियां, बेहोशी, दिमाग में सूजन और शरीर में झटके जैसे लक्षण होते रहे। जांच में रक्त में सोडियम स्तर भी अत्यधिक बढ़ा हुआ मिला। डॉक्टरों ने जटिल लेकिन समन्वित इलाज की रणनीति अपनाई।

धीरे-धीरे लौटी चेतना
लगातार निगरानी, दवाइयों और फिजियोथेरेपी के चलते नीरज की हालत में धीरे-धीरे सुधार हुआ। वेंटिलेटर हटने के बाद 6 दिन तक उसे नेज़ल ऑक्सीजन पर रखा गया और फिर फीडिंग ट्यूब से तरल आहार देना शुरू किया गया। अब वह खुद से बैठने, खाने और बोलने लगा है

माता-पिता की आंखों में फिर लौटी चमक
वो माता-पिता जो बच्चे की हालत से टूट चुके थे, आज उनकी आंखों में उम्मीद और चेहरे पर मुस्कान लौट आई है। डॉक्टरों के मुताबिक, यह सिर्फ चिकित्सा नहीं बल्कि सेवा, समर्पण और संवेदना का परिणाम है।

डॉक्टरों की टीम को मिला प्रशंसा
इस जटिल केस को सफलतापूर्वक संभालने का श्रेय कोरबा मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग को जाता है, जिसका नेतृत्व डॉ. राकेश वर्मा कर रहे थे। उनकी टीम में डॉ. धर्मवीर सिंह, डॉ. आशीष सोनी, डॉ. अनन्या, डॉ. स्मिता और डॉ. हेमा जैसी समर्पित चिकित्सक शामिल रहीं।

“बच्चे की मुस्कान ही हमारी सेवा का पुरस्कार है” — डॉक्टरों की यह भावना बताती है कि जब सेवा में संवेदना जुड़ जाए, तो चमत्कार संभव हो जाते हैं।
शुभकामनाएं नीरज को, और सलाम उन फरिश्तों को जिन्होंने उसे फिर से जीवन दिया।

 


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